टीईटी की अनिवार्यता पर बवाल: सुप्रीम कोर्ट पहुंचा शिक्षक संगठन, कहा- हजारों शिक्षकों की नौकरी और आजीविका खतरे में।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के हजारों शिक्षकों के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है। वजह है – शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करने की अनिवार्यता। इसी नियम के खिलाफ प्रदेश के शिक्षकों का संगठन यूनाइटेड टीचर्स एसोसिएशन (यूटा) सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। संगठन ने शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 और इसके 2017 संशोधन अधिनियम को चुनौती दी है।
शिक्षक संघ का कहना है कि RTE अधिनियम की धारा 23(2) और 2017 संशोधन अधिनियम की धारा-2 लागू होने से हजारों शिक्षकों की नौकरी और आजीविका खतरे में पड़ गई है।
याचिका में क्या कहा गया?
याचिका के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में अलग-अलग नीतियों के तहत सालों से शिक्षकों की भर्ती होती रही है।
1999, 2004 और 2007 में विशेष बीटीसी योजनाओं के तहत बीएड या बीपीएड धारक शिक्षकों की नियुक्तियां हुईं।
मृतक आश्रित कोटे से भी हजारों लोगों को शिक्षक पद मिले।
राज्य सरकार ने इन सभी नियुक्तियों को वैध माना और शिक्षक लंबे समय से सेवा में कार्यरत हैं। लेकिन राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) ने 2010 से 2021 तक कई अधिसूचनाएं जारी कर बार-बार न्यूनतम योग्यता बदली।
अब नए नियमों के तहत शिक्षकों के लिए टीईटी पास करना और स्नातक/स्नातकोत्तर के साथ बीएड या एकीकृत बीएड-एमएड होना जरूरी कर दिया गया है
पुराने शिक्षकों के साथ अन्याय?
शिलक्षक संघ का कहना है कि पहले से नियुक्त शिक्षकों पर यह नियम लागू करना गलत है।
कई बीएड धारक शिक्षक नियमों के मुताबिक टीईटी में बैठ ही नहीं सकते।
जो शिक्षक अपने समय की वैध नीतियों के आधार पर नौकरी में आए, उन्हें अब अचानक अयोग्य बताना असंवैधानिक है।
यह प्रावधान अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन व आजीविका का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
संघीय ढांचे पर भी सवाल
याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार के संशोधन राज्य सरकारों की भर्ती नीतियों में हस्तक्षेप कर रहे हैं। इससे संघीय ढांचे और राज्यों की शक्ति प्रभावित हो रही है।
संगठन ने मांग की है कि –
1. RTE अधिनियम की धारा 23(2) और 2017 संशोधन अधिनियम की धारा 2 को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
2. इन प्रावधानों के आधार पर शिक्षकों की सेवा समाप्त करने पर रोक लगाई जाए।
यूटा का रुख
यूटा के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राठौर ने कहा कि यह संशोधन मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।
प्रदेश में ऐसे हजारों शिक्षक हैं, जो अब टीईटी के लिए आवेदन तक नहीं कर सकते।
2001 से पहले इंटर व बीटीसी के आधार पर नियुक्त शिक्षक जिनकी सेवा 5 साल से अधिक हो चुकी है, वे इस दायरे में आ रहे हैं।
मृतक आश्रित कोटे से इंटर पास होकर नौकरी पाने वाले शिक्षक भी टीईटी के लिए योग्य नहीं हैं।
इसलिए, पहले से कार्यरत शिक्षकों को इस नियम से राहत दी जानी चाहिए।
सार: सुप्रीम कोर्ट में दायर यह याचिका सिर्फ कानूनी चुनौती नहीं है, बल्कि हजारों शिक्षकों की रोज़ी-रोटी से जुड़ा मुद्दा है। आने वाले दिनों में कोर्ट का फैसला ही तय करेगा कि इन शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित रहेगा या नहीं।








