Aganwadi News: आंगन-आंगन भटक रही हैं खुद की खातिर वक्त नहीं है, उचित मानदेय नहीं मिलता
हरदोई। हमें कभी स्वास्थ्य संबंधी तो कभी पोषण सेवाओं में लगा दिया जाता है.. कभी जनगणना के काम में तो कभी हॉट कुक्ड योजना में काम करना पड़ता है। सर्दी हो या आग उगलती गर्मी, हम 24 घंटे काम के लिए तैयार रहते हैं। यह दर्द आंगनबाड़ी कार्यक्त्रिरयों ने आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान‘ से चर्चा के दौरान बयां किया। सभी ने एकसुर में कहा कि काम के अनुकूल उन्हें पर्याप्त मानदेय तक नहीं मिलता है। स्थायी नौकरी की कोई संभावना नहीं। छुट्टियों का ठिकाना नहीं। अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह उन्हें भी वेतन और भत्ते दिए जाएं। उन्हें भी अवकाश मिलें। लाखों बच्चों, गर्भवती और धात्री महिलाओं के स्वास्थ्य, पोषण और उनके जीवन की जिम्मेदारी भी उनके कंधे पर है पर लेकिन चिंता सालती रहती है कि उन्हें और उनके परिवार को संभालने वाला कोई नहीं है
अपने जीवन का ज्यादातर समय अल्प मानदेय पर काम करने में गंवा दिया। सिर्फ इस उम्मीद के साथ कि कभी तो उनके भी दिन बहुरेंगे। कोई तो उनकी सुनेगा। नौकरी के नाम पर समाजसेवा कर रहे हैं। काम के अनुसार मानदेय काफी कम मिलता है। स्वास्थ्य संबंधी सभी कामों में वह हाथ बंटाती हैं। यह बातें आंगनबाड़ी कार्यक्त्रिरयों ने ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान कहीं। सभी ने एकसुर में कहा कि हम दूसरों के लिए तो 24 घंटे तैयार रहते हैं लेकिन हमारी आशा कौन पूरी करेगा।
आराधना यादव ने कहा कि हमारे कंधों पर कई काम लाद दिए गए हैं लेकिन सुविधाएं नाममात्र की ही हैं। काम के सापेक्ष मानदेय काफी कम है। नौकरी भी स्थायी नहीं है। हर समय नौकरी जाने का डर बना रहता है। सविता गुप्ता बताती हैं कि स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं के अलावा, जनगणना, टीकाकरण, फाइलेरिया, टीबी उन्मूलन और अन्य सरकारी योजनाओं में भी लगा दिया जाता है। बावजूद उन्हें अतिरिक्त पारिश्रमिक नहीं मिलता। कई केंद्रों पर बच्चों और महिलाओं की देखभाल के लिए उचित सुविधाएं नहीं हैं। कार्यक्त्रिरयों को बिना संसाधनों के गुणवत्तायुक्त काम करना पड़ता है। शहर में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र का किराया नाम मात्र का दिया जाता है। बिजली के बिल का भी भुगतान नहीं दिया जाता है। नगरीय क्षेत्र में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों में पर्याप्त स्थान न होने से कार्यक्त्रिरयों को पोषाहार रखने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
न्यूनतम मानदेय भी नहीं मिलता : पंजीकृत बच्चों की संख्या के अनुपात में मात्र 50 प्रतिशत बच्चों के लिए ही हॉटकुक्ड योजना का बजट आवंटित किया जाता है। चर्चा के दौरान आंगनबाड़ी कार्यक्त्रिरयों ने बताया कि अति गंभीर कुपोषित (सैम) बच्चों की पहचान, प्रबंधन और ऑनलाइन ट्रैकिंग के संबंध में कार्यक्त्रिरयों को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान किया गया पर वो नाकाफी है। सुधा ने मांग करते हुए कहा कि अधिक दक्षता के लिए आधुनिक संसाधन उपलब्ध करवाए जाएं, जिससे उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि हो। उनका सबसे बड़ा मुद्दा कम वेतन का है, मेहनत के बावजूद उन्हें न्यूनतम मानदेय तक नहीं दिया जाता। इससे आर्थिक स्थिति कमजोर है।
अतिरिक्त कार्य के लिए नहीं मिलता पारिश्रमिक : कार्यक्त्रिरयों की शिकायती लहजे में कहा कि उन्हें विभागीय कामकाज के अलावा अन्य विभागों का भी काम सौंप दिया जाता है पर जब पारिश्रमिक देने की बात आती है तो विभाग पीछे हट जाते हैं। उनके साथ हो रहे अन्याय को रोका जाए। बताया कि जब उनकी भर्ती की गई थी तब जो दायित्व सौंपे गए थे वो उन्हें बखूबी निभाती आ रही हैं पर अब अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारी उनके सिर पर डाल दी जाती है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान न रखते हुए जबरन काम करवाया जाता है।
शीतलहर चले या लू, काम तो करना ही है: आंगनबाड़ी कार्यक्त्रिरयोंं का कहना है कि चाहे शीतलहर चले या मई-जून की लू, उनसे काम लिया ही जाता है। न तो गर्मी की छुट्टी मिलती है न ही सर्दियों में राहत मिलने की कोई उम्मीद दिखाई देती है। मीनाक्षी कहती हैं कि विपरीत मौसम में तो स्कूल-कॉलेज सब बंद हो जाते हैं पर जब आंगनबाड़ी केंद्र को बंद करने का फरमान जारी होता है। बच्चों को तो छुट्टी मिल जाती है पर कार्यक्त्रिरयों और सहायिकाओं को प्रतिदिन केंद्र खोलना ही पड़ता है। ऊपर से बच्चों के घर तक राशन पहुंचाने का अतिरिक्त भार सौंप दिया जाता है। उनके कार्य की कठिनाइयों एवं चुनौतियों को देखते हुए अधिकारियों को उचित निर्णय लेने चाहिए।
आंगनबाड़ी कार्यक्त्रिरयों ने एकसुर में कहा कि अति कुपोषित एवं कुपोषित बच्चों की पहचान, प्रबंधन और ऑनलाइन ट्रैकिंग के लिए उन्हें मोबाइल दिए गए थे। इनकी गुणवत्ता इतनी खराब थी कि वो कुछ ही महीनों में खराब हो गए। अब उन्हें विभागीय कार्य अपने मोबाइल फोन से करने होते हैं। बताया गया कि ऑनलाइन कार्य के लिए उन्हें मोबाइल रिचार्ज कराने का पैसा भी नहीं दिया जाता है। आराधना यादव ने बताया कि आने-जाने और किराए में ही आधा मानदेय चला जाता है। कई बार विभाग से शिकायत भी की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।