Contract Employees Regularization Order : इस राज्य के संविदा कर्मचारियों की अब मिलेगी डबल खुशियां, 2 महीने के भीतर सभी का होगा नियमितीकरण , 3 साल नौकरी कर चुके कर्मचारियों को भी मिलेगा लाभ
चंडीगढ़: लंबे समय से नियमितीकरण्ध का इंतजार कर रहे संविदा कर्मचारियों karmchariyon की दिवाली के बाद असली दिवाली हो गई है। दरअसल हाईकोर्ट HC ने संविदा कर्मचारियों samvida karmchariyon के नियमितीकरण का रास्ता साफ करते हुए सरकार Government को कहा है कि राज्य एक आदर्श नियोक्ता के तौर पर कर्मचारियों karmchariyon का शोषण नहीं कर सकता।नियमितीकरण के हकदार
Contract Employees Regularization Order मिली जानकारी के अनुसार संविदा कर्मचारियों samvida karmchariyon के नियमितीकरण का फैसला जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने सुनाया है।
बताया जा रहा है कि नियमितीकरण की मांग को लेकर दो संविदा कर्मचारियों samvida karmchariyon ने याचिका दायर करते हुए न्याय की गुहार लगाई थी। याविकाकर्ताओं ने दलील देते हुए लिखा था कि वो क्रमशः 1979 और 1982 से लगातार काम कर रहे थे और चार दशकों से अधिक समय से स्थायी पद पर काम कर रहे थे। कोर्ट Court ने माना कि वे मौजूदा नीतियों और अदालती फैसलों के तहत नियमितीकरण के हकदार हैं। याचिकाकर्ताओं, सुरिंदर सिंह और राजेंद्र प्रसाद, को PRTC के बरनाला डिपो में पार्ट-टाइम वाटरमैन के तौर पर नियुक्त किया गया था।

40 साल से ज्यादा समय तक लगातार और पूर्णकालिक प्रकृति का काम करने के बावजूद, उन्हें कभी भी नियमित नहीं किया गया। सिंह अभी भी सेवा में हैं, जबकि प्रसाद 2019 में सेवानिवृत्त हो गए। उन्होंने हाई कोर्ट HC का दरवाजा खटखटाया था ताकि उनके नियमितीकरण से इनकार को रद्द किया जा सके और PRTC को पंजाब सरकार की 4 मार्च 1999, 23 जनवरी 2001 और 15 दिसंबर 2006 की नीतियों के तहत उनकी सेवाओं को नियमित करने का निर्देश दिया जा सके।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि उन्होंने पूर्णकालिक कर्मचारियों karmchariyon के बराबर काम किया है। नवंबर November 2004 से उन्हें न्यूनतम वेतनमान और महंगाई भत्ता DA भी दिया जा रहा था, जो निगम द्वारा उनके नियमित रोजगार की स्पष्ट स्वीकृति थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उनके मामले 1999 और 2001 की नियमितीकरण नीतियों के दायरे में आते हैं। इन नीतियों के अनुसार, 3 या 10 साल Year की सेवा पूरी करने वाले कर्मचारियों karmchariyon को स्वीकृत पदों पर समायोजित किया जाना था।
राज्य शोषण नहीं कर सकता
इसके जवाब में, PRTC के वकील ने तर्क दिया कि नियमितीकरण नीतियां लागू नहीं होतीं क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने सेवा के दौरान कभी भी नियमितीकरण की मांग नहीं की थी और उनमें से एक तो सेवानिवृत्त भी हो चुका है। हालांकि, निगम यह नहीं बता सका कि दोनों याचिकाकर्ता 1980 के दशक की शुरुआत से लगातार सेवा में थे और व्यवहार में उन्हें नियमित कर्मचारी माना जाता था। जस्टिस बराड़ ने सुप्रीम कोर्ट के ‘स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम उमा देवी’ जैसे महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि राज्य एक आदर्श नियोक्ता के तौर पर व्यक्तियों का शोषण नहीं कर सकता। उन्हें दशकों तक अनिश्चित रोजगार में नहीं रखा जा सकता।








